Friday 5 April 2013

मेरी रेल यात्रा

मेरी रेल यात्रा 

बड़ी ही तेज़ चल रही थी गाड़ी,
और सामने दिख रही थी झाड़ी।

हमने सोचा कि कूदें,
पर लगा कि पहले आँखें मूंदें।

क्योंकि हमारे पास नहीं था टिकेट ,
और पहले ही गिर चुके थे चार विकेट।

टीटी चार लोगो को पहले ही धर चुका था,
५ ० ० - ५ ० ०  रु  उनसे वसूल कर चुका था,

३ ० ०  रु  थी मेहनत की कमाई,
बस वही थी हमारी जेब में समाई।

 कूदें कि नहीं, हम इसी असमंजस में पड़े थे,
अचानक पीछे देखा तो टीटी साहब खड़े थे।

"अन्दर आ जाइये ", टीटी ने आवाज़ मारी,
शायद वो भी भांप गया था हमारी तैयारी।

बोला "बेकार है ऐसी कोशिश करना",
"निपटने से अच्छा है ५ ० ०  रु  भरना।"

अब हमारे सामने थे दो ही रास्ते,
या तो खुद कूदते या टीटी को लात मारते।

 रिस्क तो  दोनों में था पर पर दूसरे में कम था,
उसकी जान से ज्यादा हमे अपनी का गम था।

फिर हमने बचपन से आज आज तक की सारी ताकत बटोरी,
हिम्मत यूँ आई जैसे खीर खा ली हो २५ -३० कटोरी।

हमने टीटी को फाइनली  बाहर फेंकने के लिए उसका हाथ जकड़ लिया,
मगर वो ज्यादा experienced था उसने वाश बेसिन पकड़ लिया।

अब टीटी साहब तो वाश बेसिन में अटक गए,
पर हमे यूँ धक्का लगा कि हम दरवाजा पकड़ के लटक गए।

कुछ ही सेकेंड्स में आँखों के आगे बादल छा गए,
बस दरवाजा टूटा और हम ज़मीन पर आ गए।

जान तो बच गयी पर यात्रा ना हो पाई बस यही आपत्ति है,
क्योकि दरवाजे पे लिखा था.....
"आपकी यात्रा मंगलमय हो, रेलवे आपकी अपनी ही संपत्ति है।"

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